
हल्द्वानी- पिछले दिनों प्रदेश में अवैध खनन की जबरदस्त चर्चा हुई। विशेषकर यह मसला तब सुर्खियों में आया जब प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में हरिद्वार से सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस मुद्दे को लोकसभा में उठाया। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेश में अवैध खनन के मामले को लोकसभा में उठाया।त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयान का खंडन करते हुए खनन सचिव बृजेश कुमार संत ने कहा था कि साल 2017 की तुलना में 2025 में उत्तराखंड में खनन से राजस्व कई गुना ज्यादा बढ़ चुका है। ऐसे में अवैध खनन का कोई सवाल नहीं है। उन्होंने राज्य सरकार का बचाव किया था।भले ही राज्य में अवैध खनन की बात उठ रही हो। लेकिन उत्तराखंड की धामी सरकार के खनन मॉडल की चर्चा पड़ोसी राज्यों में भी है। आखिर उत्तराखंड ने खनन के जरिए अपना राजस्व कैसे बढ़ाया और उत्तराखंड में कैसे खनन किया जाता है। इसका मॉडल देखने के लिए पड़ोस के राज्य यहां आने लगे हैं।गुरुवार को ही पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश से वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम ने हल्द्वानी की गौला नदी का दौरा किया। हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों से भरी हुई टीम ने गौला नदी में खनन का जायजा लिया। और धामी सरकार के खनन मॉडल को देखा।हिमाचल से आई टीम ने देखा कि किस ट्रांसपेरेंट तरीके से गौला नदी में खनन हो रहा है और यहां से माल बाहर निकाला जा रहा है। विशेष तौर पर गोला के गेटों पर लगे हुए कांटों का निरीक्षण उनके द्वारा किया गया। हिमाचल की टीम के द्वारा देखा गया कि किस तरीके से खनन की ऑनलाइन मॉनिटरिंग की जाती है।हिमाचल प्रदेश के एडिशन चीफ सेक्रेटरी (वन) केके पंत के नेतृत्व में एक टीम ने मंगलवार को गौला का निरीक्षण किया। टीम ने बुधवार को गौला पहुंच वहां कम्प्यूटराइज्ड तौल कांटों के माध्यम से की जा रही निकासी प्रक्रिया एवं जारी ई-इनवॉइस, एमएम-11 और ट्रांजिट पास आदि के बारे में जाना। टीम ने वन निगम के महाप्रबंधक डॉ. धीरज कुमार पांडे से खनन को लेकर फॉरेस्ट क्लीयरेंस (एफसी) व अन्य स्वीकृतियों के बारे में जानकारी ली।