
दीपक अधिकारी
हल्द्वानी
मुख्यमंत्री धामी के निर्देश पर SOP जारी, स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने कहा जवाबदेही और पारदर्शिता होगी सुनिश्चित
देहरादून। उत्तराखंड सरकार ने सरकारी अस्पतालों में मरीजों को अनावश्यक रूप से बड़े अस्पतालों या मेडिकल कॉलेजों में रेफर किए जाने की प्रवृत्ति पर नकेल कसने की ठोस पहल की है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग ने रेफरल व्यवस्था को पारदर्शी और चिकित्सकीय रूप से औचित्यपूर्ण बनाने के लिए एक विस्तृत मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) लागू कर दी है।स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने स्पष्ट निर्देश जारी करते हुए कहा कि अब किसी भी मरीज को बिना ठोस चिकित्सकीय आवश्यकता के उच्च संस्थानों में रेफर नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जिला और उप-जिला अस्पतालों में विशेषज्ञ सेवाएं सुनिश्चित की जाएंगी ताकि मरीजों को अपने ही जिले में समुचित इलाज मिल सके और अनावश्यक रेफरल की वजह से समय व संसाधनों की बर्बादी न हो। नई SOP के अनुसार, अब रेफरल केवल तभी किया जाएगा जब संबंधित अस्पताल में आवश्यक विशेषज्ञ मौजूद न हों। मौके पर मौजूद वरिष्ठ चिकित्सक द्वारा मरीज की जांच के बाद ही रेफरल का निर्णय लिया जाएगा और हर रेफरल का कारण स्पष्ट रूप से दस्तावेज में दर्ज करना अनिवार्य होगा। आपात स्थिति में त्वरित निर्णय की छूट रहेगी, लेकिन उसके भी औपचारिक रिकॉर्ड बनाए जाएंगे।रेफरल की जिम्मेदारी से जुड़े अधिकारियों जैसे CMO और CMS को अब सीधे उत्तरदायी ठहराया जाएगा यदि बिना ठोस कारण के मरीज को रेफर किया गया हो। साथ ही, रेफरल की प्रक्रिया में एम्बुलेंस सेवा का भी पारदर्शी उपयोग सुनिश्चित किया गया है। 108 सेवा का इस्तेमाल केवल संस्थान से संस्थान तक के ट्रांसफर (Inter Facility Transfer) के लिए होगा और सभी विभागीय एम्बुलेंस की तकनीकी स्थिति की समीक्षा की जाएगी। राज्य में इस समय 272 “108 एम्बुलेंस”, 244 विभागीय एम्बुलेंस और केवल 10 शव वाहन कार्यरत हैं। जिन जिलों जैसे अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, पौड़ी और नैनीताल में शव वाहन उपलब्ध नहीं हैं, वहां तात्कालिक वैकल्पिक व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए हैं। पुराने वाहनों को नियमानुसार शव वाहन के रूप में पुनर्नियोजित करने की योजना भी तैयार कर ली गई है। स्वास्थ्य सचिव ने कहा कि यह पहल न केवल स्वास्थ्य तंत्र को अधिक सशक्त और जवाबदेह बनाएगी, बल्कि मरीजों को समय पर, उचित और स्थानीय स्तर पर इलाज उपलब्ध कराने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी। अब रेफरल सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि ठोस चिकित्सकीय आवश्यकता के आधार पर ही होगा यही उत्तराखंड सरकार की मंशा है।