
दीपक अधिकारी
हल्द्वानी
भारत बंद: 25 करोड़ कर्मचारियों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल
मंगलवार को पूरा देश एक बड़ी औद्योगिक और श्रमिक हड़ताल का गवाह बनने जा रहा है. 10 केंद्रीय श्रमिक संगठनों और उनके सहयोगी संगठनों ने निजीकरण, लेबर कोड और श्रमिक अधिकारों के हनन के खिलाफ राष्ट्रव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है ट्रेड यूनियनों का दावा है कि इस हड़ताल में 25 करोड़ से ज्यादा श्रमिक शामिल होंगे. बैंक, बीमा, डाक, कोयला खनन, निर्माण, और कई राज्यों में परिवहन सेवाएं इस हड़ताल से प्रभावित हो सकती हैं. खासकर सरकारी और कोऑपरेटिव बैंक बंद रहने की आशंका है. पोस्ट ऑफिसों का कामकाज रुक सकता है. राज्य परिवहन बसें, खासकर ओवरलोड वाले क्षेत्रों में, ठप हो सकती हैं. बीमा कंपनियों जैसे LIC के कार्यालयों में कामकाज ठप रहेगा।
ट्रेड यूनियनों की क्या हैं मांगें?
चार लेबर कोड को रद्द किया जाए
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण रोका जाए
मनरेगा जैसे ग्रामीण रोजगार कार्यक्रमों को मजबूत किया जाए
न्यूनतम मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी दी जाए।
ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की अमरजीत कौर के अनुसार, ये हड़ताल केवल शहरी नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत से भी जुड़ी है. संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि मजदूर संगठन भी इस आंदोलन में साथ हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में रैलियों और सभाओं का आयोजन होगा. हालांकि रेलवे और टूरिज्म को इस बार हड़ताल से बाहर रखा गया है ताकि बुनियादी सेवाओं पर न्यूनतम असर हो. लेकिन इतने बड़े स्तर की हड़ताल से असुविधा की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता पहले भी 2020, 2022 और 2024 में ऐसी हड़तालें हो चुकी हैं, लेकिन ट्रेड यूनियन नेताओं का कहना है कि इस बार की हड़ताल इसलिए अलग है क्योंकि यह मजदूरों और किसानों दोनों के साझा मंच पर लड़ी जा रही है. अभी तक सरकार की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
इस हड़ताल में कौन-कौन ले रहा भाग ?
इस हड़ताल में बैंकिंग, परिवहन, डाक सेवाएं, कोयला खनन और निर्माण क्षेत्र के करीब 25 करोड़ कर्मचारी और ग्रामीण मजदूर भाग ले रहे हैं. इससे कई राज्यों में सार्वजनिक सेवाओं पर असर पड़ने की संभावना है।
क्या-क्या खुले और बंद रहेंगे?
स्कूल, कॉलेज और निजी दफ्तरों के सामान्य रूप से खुले रहने की उम्मीद है, लेकिन परिवहन, बैंक और डाक सेवाओं में रुकावट के चलते आम जनजीवन प्रभावित हो सकता है।
बिजली आपूर्ति पर असर संभव
भारत बंद का असर बिजली आपूर्ति पर भी पड़ सकता है. बिजली क्षेत्र से जुड़े 27 लाख से अधिक कर्मचारी इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल में शामिल होने जा रहे हैं, जिससे कई राज्यों में बिजली आपूर्ति बाधित हो सकती है।
ट्रेड यूनियनों के अनुसार, केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ आयोजित इस हड़ताल में बिजलीकर्मियों की भागीदारी बड़े पैमाने पर होगी. ऐसे में कई क्षेत्रों में पावर कट या सेवाओं में रुकावट की आशंका जताई जा रही है।
यूनियनों का क्या कहना है?
इस आंदोलन को संयुक्त किसान मोर्चा, कृषि मजदूर यूनियन, और कई क्षेत्रीय संगठनों का समर्थन भी मिला है. यूनियनों का कहना है कि यह विरोध प्रदर्शन श्रम कानूनों में बदलाव, सार्वजनिक क्षेत्रों के निजीकरण, संविदा नौकरियों के विस्तार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को लेकर है।
किसानों और ग्रामीण संगठनों का समर्थन
इस बार हड़ताल को संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) और कृषि श्रमिक यूनियनों के संयुक्त मंच का भी समर्थन मिला है. इनके सहयोग से ग्रामीण इलाकों में व्यापक स्तर पर प्रदर्शन और सड़कों पर जाम की रणनीति बनाई गई है।