
दीपक अधिकारी
हल्द्वानी
उत्तराखंड में हाथियों की लगातार बढ़ती संख्या वन विभाग के लिए भी चुनौती बन रही है. मानव वन्यजीव संघर्ष की घटना में जहां हाथियों और इंसानों की जान जा रही है तो वही ट्रेन और सड़क हादसों में कई हाथियों की जान भी जा चुकी है. हाथियों के पुश्तैनी रास्ते हाथी कॉरिडोर बंद हो चुके हैं जिसके चलते हाथी अपने मूल रास्ते से भटक कर ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में पहुंच रहे हैं जिसके चलते मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ रही है. इसी को देखते हुए उत्तराखंड वन विभाग के तराई पूर्वी वन प्रभाग और WWF ने संयुक्त पहल करते हुए हाथीयो की अपनी पुश्तैनी रास्तों के सर्वे का काम शुरू किया है प्रभागीय वनाधिकारी हिमांशु बागड़ी ने बताया कि तराई के क्षेत्रो में कई हाथी कॉरिडोर है. मानव वन्यजीव संघर्ष की घटना और ट्रेन हादसों में हाथियों की हो रही मौत को देखते हुए हाथी कॉरिडोर संभावित क्षेत्रों को WWF की मदद से हाथियों के बिचरण वाले रास्तों को कैमरा ट्रैप के माध्यम से निगरानी की जा रही है. इसके अलावा हाथियों की कॉरिडोर पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से हाथियों की मोमेंट की जानकारी और उसका डेटा इकट्ठा किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि डेटा के माध्यम से जानकारी जुटाई जा रही है कि हाथी कॉरिडोर क्षेत्र में साल के कौन से मौसम में हाथियों का अधिक आना-जाना होता है. डाटा कलेक्शन करने के बाद वन विभाग द्वारा प्लानिंग की जाएगी की हाथियों के कॉरिडोर को किस तरह से बचाई जा सके. जिससे कि मानव वन्यजीव की संघर्ष की घटना के साथ-साथ हादसों में हाथियों की हो रही मौत को रोका जा सके उन्होंने कहा कि हाथी कॉरिडोर का सर्वे, हाथियों के प्राकृतिक आवास और उनके विचरण मार्गों को बचाने के लिए किया जा रहा है. यह सर्वे यह सुनिश्चित करने के लिए है कि हाथियों के लिए सुरक्षित रास्ते उपलब्ध हों और उनके आवासों को बचाया जा सके हाथी कॉरिडोर का मुख्य उद्देश्य हाथियों को सुरक्षित रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए रास्ते प्रदान करना है जिससे मानव-हाथी संघर्ष को कम किया जा सके.
जाने क्या है हाथी कॉरिडोर
हल्द्वानी क्षेत्र में हाथी कॉरिडोर का विशेष महत्व है क्योंकि यह हाथी कॉरिडोर क्षेत्र राजाजी राष्ट्रीय उद्यान और कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के साथ-साथ शिवालिक क्षेत्र के जंगलो तक फैला है जहां हाथियों का विचरण होता है. मानव अतिक्रमण के चलते जगह-जगह हाथी कॉरिडोर बाधित हो चुके हैं हाथी अपने पुरखों के रास्ते को छोड़कर आबादी के क्षेत्र में अपना नया रास्ता ढूंढ रहे हैं. जिसके चलते मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. जहां इंसानों के साथ-साथ हाथियों के भी मौत हो रही है.2021 के गणना के अनुसार राज्य में हाथियों की संख्या 2026 हो गई है. ये 2017 में 1839 थी. उत्तराखंड में हाथियों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है. बात हाथियों की मौत की करें तो 24 साल में करीब 525 हाथियों की मौत हुई. जिसमें ट्रेन से कटने से करीब 28 हाथियों की मौत हुई है.